इतिहास अगर मनुष्य की प्रकृति पर विजय, स्वाभिमान, बहुत हद तक उसके अहंकार `और वर्चस्ववाद का प्रतीक है तो भूगोल और खगोलशास्त्र किसी निश्चित-अनिश्चित-संभावित अस्तित्व के सापेक्ष मनुष्य की क्षुद्रता, क्षणभंगुरता का द्योतक है और उसमें बालसुलभ कौतूहल, निरभिमान और एक हद तक वैराग्य का भाव भरने वाला कारक भी। ज्ञान-विज्ञान, खासकर खगोलशास्त्र के क्षेत्र में लोकप्रिय साहित्य रचना करने वाले वैज्ञानिक साहित्यकार गुणाकर मूळे की पुस्तक ब्रह्मांड परिचय उस जगत से हमारा साक्षात्कार कराती है, जिसे नंगी आंखों से देखना और रोटी की गोलाई और रोजमर्रा की व्यस्तता में कैद साधारण मस्तिष्क से सोचना प्रायः संभव नहीं होता है।
ऋग्वेद, तैत्तिरीय ब्राह्मण जैसे पौराणिक भारतीय ग्रंथों और आर्यभट, भास्कराचार्य आदि भारतीय खगोलज्ञों का संदर्भ देते हुए खगोलशास्त्र की यूनानी, अरबी और यूरोपीय अवधारणाओं को पुस्तक अपनी विवेचना के दायरे में समेटती है। इसमें सूर्य का पृथ्वी की परिक्रमा करने की अंधधारणा से लेकर साल 2006 के अगस्त में अंतरराष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ की बैठक में प्लूटो को ग्रह की बिरादरी से निकाले जाने तक की कहानी दर्ज है।
पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता खगोलशास्त्र जैसे वैज्ञानिक और जटिल समझे जाने वाले विषय को रोचक तरीके से प्रस्तुत करना है। ‘सबसे सुंदर ग्रह शनि’, ‘ध्रुव तारा, ध्रुव नहीं है’ और ‘ब्रह्मांड की अंधेरी गुफाएं’ जैसे शीर्षकों से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
लेखक के इस दावे से सहमत हुआ जा सकता है कि “यह ब्रह्मांड परिचय ग्रंथ संपूर्ण ज्ञेय ब्रह्मांड का वैज्ञानिक परिचय प्रस्तुत करता है—भरपूर चित्रों, आलेखों व नक्शों सहित। ग्रंथ के बारह परिशिष्टों की प्रचुर संदर्भ सामग्री इसे खगोल विज्ञान की एक उपयोगी हैंडबुक बना देती है। हिन्दी माध्यम से ब्रह्मांड के बारे में अद्यतन, प्रामाणिक जानकारी चाहने वाले पाठकों के लिए एक अनमोल ग्रंथ।” खगोल से जुड़ी अद्यतन घटनाओं, अनुसंधानों की जानकारी के साथ लोकजीवन में रूढ़ हो चुकी सार्थक-निरर्थक लोकोक्तियों, मुहावरों और अंधविश्वासों पर तार्किक टिप्पणियों सहित ढाई सौ पृष्ठों में फैली ‘ब्रह्मांड परिचय’ को उसकी शोध सामग्री हैंडबुक से आगे बढ़कर टेक्स्टबुक का महत्व दे देती है।
धरती के अतिरिक्त ‘ब्रह्मांड में जीवन की तलाश’ को समझते हुए महाविध्वंसक हथियारों के बड़े पैमाने पर निर्माण को लेकर लेखक चिन्तित है। एक ओर हम इस ग्रह से अलग कहीं और भी बस्तियां बसाने की तैयारी में हैं तो दूसरी ओर पर्यावरणीय संतुलन, ओजोन परत और शांति प्रस्तावों की अवहेलना कर ब्रह्मांड में एक मात्र ज्ञात जीवन को भी मिटाने पर तुले हैं। लगभग दस अरब साल की आयु वाली पृथ्वी को मानव अगले सौ-दो सौ सालों में ही मिटा देने की जल्दी में क्यों है, जबकि साढ़े चार अरब साल प्रौढ़ धरती का विनाश पांच अरब साल बाद ही सही स्वतः हो जाना तय है।
साभारः हिन्दुस्तान
पुस्तक- ब्रह्मांड परिचय, लेखक- गुणाकर मूळे, प्रकाशक- राजकमल प्रकाशक, दिल्ली कीमत- 325 रुपये
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